मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है? | Dofollow Social Bookmarking Sites 2016
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(i) गर्मी के दिनों में शरीर की सतह से बहुत सारा पानी पसीने के रूप में त्वचा से उतसर्जित होता है। इससे मूत्र में पानी को कम करने की आवश्यकता होती है ताकि शरीर में पानी का संरक्षण हो सके।इसलिए, वृक्काणु के विभिन्न भाग; जैसे हैनले का लूप पानी को दोबारा से अवशोषित कर लेते हैं। इससे मूत्र की मात्रा कम हो जाती है।(ii) सर्दियों के दिनों में जब शरीर की सतह से पानी की हानि न्यूनतम हो जाती है, तब यदि हम अधिक पानी पिटे हैं तो रक्त का सही संगठन बनाए रखने के लिए इसके अधिक उत्सर्जन की आवश्यकता पड़ती है। रक्त से पानी को दोबारा अवशोषित नहीं किया जाता है, बल्कि इसे वृक्क से मूत्र के रूप में उत्सर्जित कर दिया जाता है। इससे मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है।

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